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सर्वदलीय बैठकः विपक्षी सांसदों ने किया चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाले विधेयक का विरोध, बताया- संविधान विरोधी

सोमवार से संसद के विशेष सत्र का अगाज होने जा रहा है। उससे पहले रविवार को नई दिल्ली में सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। बताया जा रहा है कि इस बैठक के दौरान विपक्षी सांसदों ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए लाए जा रहे विधेयक का विरोध किया। विपक्षी सांसदों ने इस विधेयक को संविधान विरोधी और अलोकतांत्रिक बताया।

विपक्ष की ये है चिंता
बता दें कि इस विधेयक में देश के मुख्य न्यायाधीश की जगह केंद्रीय मंत्री को चुनाव आयुक्त की चयन प्रक्रिया में शामिल किया गया है। आरोप है कि इस कदम से सरकार का चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर ज्यादा नियंत्रण हो जाएगा। यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के मार्च में दिए गए उस आदेश के बाद आया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और मुख्य न्यायाधीश के एक तीन सदस्यीय पैनल को चुनाव आयुक्त का चयन करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। हालांकि सरकार द्वारा पेश विधेयक में मुख्य न्यायाधीश की जगह केंद्रीय मंत्री को शामिल कर लिया गया है।

अगस्त में राज्यसभा में हुआ था पेश विधेयक
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यालय के नियम) विधेयक को अगस्त में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा राज्यसभा में पेश किया गया था। इस विधेयक के अनुसार, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता, नेता विपक्ष और केंद्रीय मंत्री, जिसे प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाएगा, चुनाव आयुक्त का चयन करेंगे। हालांकि कांग्रेस, टीएमसी, आप और वामपंथी पार्टियां इस विधेयक का खुलकर विरोध कर रही हैं और सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कमजोर करने और पलटने का आरोप लगा रही हैं। हालांकि भाजपा का कहना है कि उसने अपने अधिकार के तहत ही यह विधेयक पेश किया है।

क्यों हो रही विधेयक की आलोचना
इस विधेयक के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों का वेतन और अन्य भत्ते कैबिनेट सचिव के समान होंगे। मौजूदा कानून के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर वेतन दिया जाता है। एक अधिकारी ने बताया कि ‘वेतन तो समान यानी ढाई लाख रुपये महीना ही रखा गया है लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्त अब कैबिनेट सचिव के बराबर माने जाएंगे ना कि सुप्रीम कोर्ट जज के बराबर। इस विधेयक के संसद से पास होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त सर्वोच्च श्रेणी के हिसाब से राज्य मंत्री से भी नीचे होंगे। इस तरह चुनाव आयुक्तों को नौकरशाह के बराबर माना जाएगा और यह चुनाव के दौरान मुश्किल खड़ी कर सकती है।’

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