
डबरा। (नरेश कुमार मांझी की रिपोर्ट)। मध्यप्रदेश में नया शिक्षण सत्र शुरू हो चुका है और सरकारी तौर पर 15 जून से स्कूल खुल गए हैं, लेकिन वास्तविकता ये है कि ग्रामीण इलाकों में शिक्षक ही स्कूल नहीं पहुंच रहे हैं तो छात्र-छात्राएं कैसे पहुंचेंगे। हर साल की तरह इस साल भी ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूलों की व्यवस्था बदहाल ही रहनी है, इसके संकेत मिलने लगे हैं। सरकारी स्तर पर स्कूल प्रवेशोत्सव मनाया गया और स्कूल चलें हम जैसे नारों के साथ रैलियां निकाली गईं, लेकिन उसके बाद सब कुछ पहले जैसा ही होने लगा।
मध्य प्रदेश के डबरा जिले के दूरदराज क्षेत्र में शिक्षा की स्थिति बदहाल है। सरकारी स्कूल में कई दिनों तक ताले लगे रहते हैं। छात्र-छात्राएं आते हैं और अपना समय व्यतीत कर वापस चले जाते हैं। लेकिन शिक्षक नहीं पहुंचते हैं. स्कूल उसी दिन खुलता है, जब कोई जांच करने वाली कमेटी आ रही होती है या फिर उस रास्ते में कोई वीआईपी मूवमेंट होता है।
प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में शिक्षकों की मनमानी जारी है। शिक्षक स्कूल जाना जरूरी समझ ही नहीं रहे हैं। कभी-कभार वो औपचारिकता के लिए जाते हैं तो घंटे-दो घंटे में लौट आते हैं, लेकिन विद्यार्थियों को पढ़ाना जरूरी नहीं समझते।
दरअसल पूरा मामला डबरा जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित शासकीय प्राथमिक शाला गजापुर का है। जहां 2.00 बजे तक स्कूल में ताला लगा हुआ है। स्कूल का समय 11. से 4.00 बजे तक है। रोज ही बच्चे यहां पर शिक्षक का इंतजार करते रहते हैं। समय व्यतीत करने के लिए खेलते हैं, लेकिन यहां शिक्षक आएंगे या नहीं आएंगे कोई भरोसा नहीं। गुरूवार को भी स्कूल बंद था।
डबरा जिले के ही शासकीय प्राथमिक शाला अजैगढ़ स्कूल में लगभग 22 छात्र-छात्राएं और 3 शिक्षक है। शिक्षक इसी क्षेत्र के निवासी है। जिस कारण ग्रामीण इनकी शिकायत करने से भी डरते हैं। रोजाना सुबह बच्चे स्कूल में पढ़ने के लिए समय पर पहुंच जाते हैं, लेकिन शिक्षक के उपस्थित नहीं होने के चलते स्कूल के बाहर ही बच्चे खेलते रहते हैं।शिक्षक कभी कभार उपस्थित भी होते है तो बच्चों को पढानें के बजाय कमरे में गप्प मारते पाए जाते है। बच्चों के अभिभावकों को पता है कि बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं, लेकिन जब शिक्षक ही समय पर नहीं पहुंचते, तो बच्चे कैसे पढ़ेंगे, बच्चे कैसे भविष्य गढ़ेंगे।
डबरा जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि हम जांच कराएंगे और कार्रवाई करेंगे। वहीं ग्रामीण लोगों का कहना है कि अधिकारी मॉनिटरिंग करने के लिए शालाओं में पहुंचते हैं, तो शिक्षकों को पता रहता है और शाला समय पर खोल लेते हैं।
स्कूल में शिक्षकों के न रहने पर मिडडे मील बनाने वाले समूह संचालक भी मनमानी कर रहे हैं और बच्चों को भोजन बनाने की औपचारिकता किसी तरह से निभा रहे हैं। न वो गुणवत्ता का ख्याल रख रहे हैं और न मीनू का। ग्रामीण अगर उनकी शिकायत करते भी हैं तो स्कूल शिक्षक भी मिडडे मील बनाने वाले समूह संचालकों का ही पक्ष लेते हैं।
डबरा जिले में स्कूलों की व्यवस्था में और भी कई तरह की गड़बड़ियां हैं। सांझा चूल्हा योजना के अंतर्गत आंगनवाड़ी केंद्रों के बच्चों के भोजन की जिम्मेदारी भी समूह संचालकों के पास है, और वो स्कूलों में बचने वाले भोजन को ही आंगनवाड़ी केंद्रों में बांट देते हैं।