Madhya Prdesh

बंडा विधानसभा चुनाव 2023: रंजोर सिंह बुंदेला राजनीतिक पार्टियों पर हावी, स्थानीय बीजेपी प्रत्याशी के चुनाव प्रचार से कार्यकर्ता नदारद

भोपाल/ सागर/ बंडा। मध्य प्रदेश के सागर जिले के बंडा विधानसभा से रंजोर सिंह बुंदेला के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद बीजेपी की नींद उड़ गई है। टिकट वितरण से नाराज बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराजगी बीजेपी उम्मीदवार पर भारी पड़ रही है। बीजेपी के कई कद्दावर मंत्री और नेताओं के तमाम प्रयास के बावजूद बीजेपी के स्थानीय वरिष्ठ नेता रंजोर सिंह बुंदेला को टिकट न मिलने से नाराज स्थानीय कार्यकर्ता बीजेपी उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह लाेधी के चुनाव प्रचार से नदारद हैं। बंडा में बीजेपी उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह लाेधी बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी से संकट में है।

बंडा विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला रंजोर सिंह बुंदेला और कांग्रेस विधायक तरबर सिंह लोधी के बीच है। बंडा में बीजेपी उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह लाेधी जीत की दौड़ से बाहर हैं। बीजेपी के टिकट वितरण को लेकर बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है। स्थानीय नेता और कार्यकर्ता बीजेपी उम्मीदवार के चुनाव प्रचार से दूरी बनाए हुए है।

जहाँ एक ओर बीजेपी और कांग्रेस जातिगत समीकरणों को देखते हुए अपने उम्मीदवार तय कर रहे है। वही दूसरी ओर रंजोर सिंह बुंदेला गरीब, दलित, शोषित, वंचित पिछड़े समेत समाज के सभी वर्गों के विकास के लिए पिछले 4 दशक से क्षेत्र में काम कर रहे है। इन्ही कारणों से बसपा रंजोर सिंह बुंदेला को अपने खेमे में लाने के लिए प्रयास कर रही है। देखना यह है कि रंजोर सिंह बुंदेला निर्दलीय चुनाव लड़ते है या फिर बसपा से।

पिछले चुनाव का अनुभव

एमपी में 2018 के विधानसभा चुनाव में 7 सीटों पर निर्दलीय एवं सपा बसपा के उम्मीदवार जीतने के कारण ही कांग्रेस और भाजपा पूर्ण बहुमत से चंद कदम दूर रह गई थी। चुनाव परिणाम से जाहिर है कि विधानसभा की 230 सीटों में से 114 सीटें जीत कर कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। कांटे के मुकाबले में भाजपा 109 सीटें जीत कर दूसरे स्थान पर रही। स्पष्ट है कि सरकार बनाने के लिए 116 सीटों के जादुई आंकड़े से कांग्रेस महज 2 सीट और भाजपा 7 सीट से पीछे रह गईं।

बसपा ने 2, सपा ने 1 और निर्दलीयों ने 4 सीट जीतकर कांग्रेस और भाजपा का खेल बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि बाद में सपा, बसपा और निर्दलीय के समर्थन से ही कांग्रेस 15 साल के इंतजार के बाद एमपी की सत्ता पर काबिज हो सकी, मगर मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज ज्योतिरादित्य सि‍ंध‍िया की अगुवाई में 15 महीने के भीतर ही कांग्रेस को बड़ी बगावत का सामना कर सत्ता गंवानी पड़ी। इस बगावत के फलस्वरूप फिर से सत्ता में आई भाजपा के विधायकों की संख्या 109 से बढ़कर 128 हो गई। वहीं कांग्रेस के विधायक घटकर 98 रह गए।

बसपा ने भी खोले पत्ते

बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी पिछले दिनों एमपी विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी भावी रणनीति के संकेत दे दिए हैं। मायावती ने एक बयान में कहा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना के आगामी विधानसभा चुनाव में अगर बसपा सत्ता संतुलन बनाने की ताकत अर्जित करती तो पार्टी उस राज्य की सरकार में शामिल होगी। ज्ञात हो कि मायावती ने राजस्थान के पिछले विधानसभा चुनाव में जीते बसपा के सभी 6 विधायक कांग्रेस में शामिल होने के कटु अनुभव को ध्यान में रखकर अभी से सत्ता में भागीदार बनने का ऐलान कर दिया है। एमपी के पिछले चुनाव में बसपा ने भी बुंदेलखंड क्षेत्र में ग्वालियर चंबल संभाग की भिंड सीट और सागर संभाग के दमोह जिले की पथरिया सीट जीती थी। बसपा ने आगामी चुनाव में चंबल सहित समूचे एमपी की दलित बहुल सीटों पर अपनी ताकत झोंकने की रणनीति बनाई है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button