
खंडवा। खंडवा के नंदकुमार सिंह मेडिकल कॉलेज डीन अनंत कुमार पवार द्वारा एमबीबीएस के विद्यार्थियों के टॉर्चर के कई मामले सामने आ रहे हैं। मेडिकल कॉलेज में उनकी तूती बोलती है। उनके खौफ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले छह साल में तीन जूनियर डॉक्टर डिग्री अधूरी छोड़ चुके हैं। यहाँ के प्रोफ़ेसर डॉ. विनीत गोहिया और डॉ. नजीम सिद्दीकी आये दिन कॉलेज से बाहर रहते है, क्लास न होने के कारण वे स्टूडेंट की भी एब्सेंट लगा देते है। स्टूडेंट कई बार बायोमेट्रिक अटेंडेंस के लिए डीन को पत्र लिख चुके है। लेकिन डीन प्रोफ़ेसर के दबाव में बायोमेट्रिक अटेंडेंस लागू नहीं कर पा रहे। उल्टा वो स्टूडेंट पर दबाब बनाकर 60-65 स्टूडेंट को परीक्षा में सम्मिलित न करने की धमकी भी दे रहे। डीन अनंत कुमार पवार पहले भी मेडिकल कॉलेज में पढाई और चिकित्सा सुविधाएँ न होने की शिकायत करनें वाले 2021 बैच के 19 विद्यार्थियों को परीक्षा में बैठने से रोक दिया था। जिसके बाद से विद्यार्थियों में भय का माहौल बना हुआ है। हिम्मत जुटाकर कुछ विद्यार्थियों ने राज्यपाल, डीएमई और प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा विभाग तक से शिकायत की, लेकिन कोई जांच या कार्रवाई नहीं हुई। कोई विद्यार्थी पढाई और सुविधाएं न होने की शिकायत करे इसलिए डीन अनंत कुमार पवार द्वारा पिछले 4 सालों से सभी विद्यार्थियों से एडमिशन के बाद एफिडेविट लिखवाकर ले लिया जाता है। उसी एफिडेविट का हवाला देकर उन्हें धमकाया जाता है।
नाम और पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर मेडिकल कॉलेज विद्यार्थियों ने डॉ. विनित गोहिया और डॉ नजीम सिद्दीकी के कारनामों का खुलासा किया। विद्यार्थियों ने बताया कि मेडिकल कॉलेज का सारा वर्कलोड जूनियर डॉक्टरों पर डालकर स्वयं कॉलेज से कई दिनों तक गायब रहते है। ये कई प्राइवेट अस्पताओं में प्रेक्टिस भी करते है। ड्यूटी पर मौजूद होने के बाद भी ये दोनों प्रोफ़ेसर अटेंडेंस शीट में गैर हाजिर मार्क करते है। हम लोगों ने पहले इसे प्रैक्टिकल ट्रेनिंग समझकर अनदेखा किया, लेकिन प्रताड़ना का लेवल दिन पर दिन बढ़ता चला गया। बात सिर्फ अटेंडेंस शीट में एब्सेंट करने तक सीमित नहीं रही थी। उन्होंने ड्यूटी पर होने के बावजूद एब्सेंट का नोटिस देना शुरू कर दिया।
बात करने पर क्लास जॉइन नहीं करने की सजा
मेडिकल कॉलेज के जहरीले माहौल को लेकर आपस में बात करने या दूसरे कंसल्टेंट (प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर) से चर्चा करने पर क्लास जॉइन नहीं करने की सजा दी जाती थी। इसका लिखित आदेश भी नहीं दिया जाता था, बल्कि मौखिक और नोटिस बोर्ड पर मार्कर से लिखकर देती थें। लेकिन, गलती कभी नहीं बताई जाती थी, ताकि अगर संबंधित सजा के बारे में डीएमई अथवा किसी अन्य फोरम पर शिकायत की जाए, तो सबूत नहीं रहे।
डिप्रेशन के कारण मेडिकल कॉलेज में नहीं थम रहा मेडिकल विद्यार्थियों की आत्महत्या का मामला
पिछले 3 सालों में मध्यप्रसेश में मेडिकल विद्यार्थियों में सुसाइडल केस 2 से 3 गुना अधिक देखने को मिल रहे है।वर्किंग सिस्टम से जुड़ी कमियां और ड्यटी ऑवर्स बहुत ज्यादा होने के बाद भी विद्यार्थियों को परीक्षा में न बैठने की धमकी देने के कारण विद्यार्थियों में डिप्रेशन बढ़ता जा रहा है। इन्ही कारणों से पिछले 3 सालों में मध्यप्रदेश में मेडिकल स्टूडेंट्स में आत्महत्या जैसे मामले बढे हैं।